Supreme Court एक केस की सुनवाई करते हुए उसकी याचिका ख़ारिज कर दी जिसमें मामला ये था की अविवाहित महिला सेरेगेसी के जरिये मां बने। कोर्ट ने कहा कि यह भारतीय समाज के खिलाफ है।
Supreme Court ने अविवाहित महिला के मां बनने वाली अर्जी को ख़ारिज करते हुए कहा कि हम पश्चिमी देश नहीं हैं। शादी व्यवस्था की रक्षा और संरक्षण किया जाना चाहिए। कोर्ट ने आगे कहा हम पश्चिमी देशों की तरह इसकी इजाजत नहीं दे सकते हैं, जहां बिना विवाह के ही सन्तान उत्पत्ति की इजाजत मिल जाती है।
Supreme Court ने बिना शादी मां बनना बताया अपवाद
न्यायमूर्ति बीबी नागरथाना और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि भारत में अविवाहिता का बच्चे को जन्म देना समाज के नियम के बजाय अपवाद है। कोर्ट ने कहा “यहां शादी व्यवस्था में मां बनना एक आदर्श माना जाता है। शादी के बिना संतान को जन्म देने कोई आदर्श नहीं है। हम इसके बारे में चिंतित हैं। हम बच्चे के कल्याण के दृष्टिकोण से बात कर रहे हैं। ऐसा करने से शादी व्यवस्था देश में बचेगी या या नहीं?
Supreme Court ने सुझाव में क्या कहा
जानकारी के लिए बता दें कि सरोगेसी रेगुलेशन एक्ट के तहत, केवल उन महिलाओं को संतान उत्पत्ति का अधिकार है, जो विधवा हों या तलाशकशुदा हों। इसके अलावा उनकी आयु 35 साल से 45 साल के बीच होनी चाहिए। गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने महिला को बच्चा गोद लेने की सलाह दी है। हालांकि याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने वेटिंग पीरियड का हवाला देते हुए सुझाव को इनकार कर दिया। पीठ ने कहा, “44 साल की उम्र में सरोगेट बच्चे को पालना और बड़ा करना मुश्किल होता है। आपको जीवन में सब कुछ नहीं मिल सकता।
कोर्ट ने ये भी कहा कि याचिकाकर्ता अकेला रहना पसंद करती हैं। हम समाज और शादी व्यवस्था के बारे में भी चिंतित हैं। हम पश्चिम जैसे नहीं हैं, जहां कई बच्चे अपनी मां और पिता के बारे में नहीं जानते हैं। हम नहीं चाहते कि बच्चे अपने माता-पिता के बारे में जाने बिना यहां घूमें।”
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