Supreme Court में करप्शन के मामले से अगर कोई सरकारी अफसर जुड़ा है तो उनके खिलाफ केस चलाने के लिए एजेंसियों के सामने बड़ी शर्त होती है। पहले उन्हें संबंधित अथॉरिटी से मंजूरी लेनी होती है। मंजूरी नहीं मिली तो चाहे जितने पुख्ता सबूत हों, केस नहीं चल सकता। इस बात को चुनौती दी गई है।
Supreme Court ने भ्रष्टाराचर निरोधक कानून के एक प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह इस मामले में दाखिल याचिका पर 20 नवंबर को सुनवाई करेगा। भ्रष्टाचार निरोधक कानून (Prevention of Corruption Act) के उस प्रावधान को चुनौती दी गई है जिसके तहत किसी अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में उसके खिलाफ जांच शुरू करने से पहले संबंधित अथॉरिटी से मंजूरी लेना अनिवार्य किया गया है। जस्टिस बीवी नागरत्ना की अगुआई वाली बेंच ने कहा कि सुनवाई 20 नवंबर को होगी।
Supreme Court में 2018 में नोटिस जारी हुआ था
Supreme Court में 20 जुलाई को मामला उठाया गया था। याची ने कहा था कि इस मामले में दाखिल याचिका पर 26 नवंबर 2018 को ही नोटिस जारी किया गया था। इस मामले में जारी नोटिस के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से 15 फरवरी 2019 तक जवाब दाखिल करने को कहा था।
याचिका में भ्रष्टाचार निवारण एक्ट की संशोधित धारा 17(ए) (1) की वैधता को चुनौती दी गई है। भ्रष्टाचार निरोधक कानून में बदलाव कर सरकारी कर्मियों के खिलाफ केस के लिए मंजूरी अनिवार्य कर दिया गया।
Supreme Court ने केंद्र सरकार से माँगा जवाब
याचिकाकर्ता एनजीओ ने कहा है कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून में बदलाव कर सरकार ने जो नया प्रावधान किया है उसे निरस्त किया जाए। नए प्रावधान के तहत ये तय किया गया है कि सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ मामले की छानबीन शुरू करने से पहले सरकार की संबंधित अथॉरिटी के मंजूरी लेनी होगी।
सुप्रीम कोर्ट में एनजीओ सेंट्रल फॉर पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) की ओर से प्रशांत भूषण ने अर्जी दाखिल कर कहा था कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा में जो बदलाव किया गया है और कानून में धारा-17 ए (1) के तहत जो नया प्रावधान किया गया है वह गैरसंवैधानिक है। मामले में केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा था।
भ्रष्टाचार निरोधक कानून में हुआ बदलाव
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया है कि धारा-17 ए (1) के तहत प्रावधान किया गया है कि सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ जब मामले की छानबीन शुरू करनी हो तो उसके लिए संबंधित अथॉरिटी से मंजूरी लेनी होगी और इस तरह से ये संविधान के अनुच्छेद-14 व 21 का उल्लंघन है और इस तरह से भ्रष्टाचार निरोधक कानून प्रभावहीन हो जाएगा। ये पहले के प्रावधान को कमजोर करता है इससे करप्शन के मामले में बढ़ोतरी होगी। सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर उक्त प्रावधान को निरस्त करने की गुहार लगाई गई है और कहा गया है कि उसे गैरसंवैधानिक घोषित किया जाए।
- और पढ़े
- Shahnaz Gill हॉस्पिटल में हुई भर्ती, वीडियो देख फैंस ने मांगी जल्दी ठीक होने की दुआएं
- PM Modi को इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने लगाया फ़ोन, जानिए फिलिस्तीन-इजरायल जंग को लेकर क्या बात हुई
Sanjay Singh की बढ़ाई गई रिमांड, कोर्ट ने पत्रकारों से बातचीत पर लगाईं रोक