बिहार की राजनीति में एक बार फिर हलचल मची है
बिहार 2025 में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले एक ताज़ा सर्वे ने राजनीतिक गलियारों में चर्चा को तेज़ कर दिया है। सर्वे के नतीजे यह संकेत दे रहे हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और एनडीए (NDA) गठबंधन के लिए आगामी चुनाव आसान नहीं होंगे। सर्वे के आंकड़े सामने आने के बाद राजनीतिक विश्लेषक, विरोधी दल और आम जनता — सभी इस बहस में शामिल हो चुके हैं कि बिहार का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा?
सर्वे में क्या आया सामने?
हाल ही में एक प्रमुख एजेंसी द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार, बिहार की जनता मौजूदा सरकार के प्रदर्शन से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। राज्य की बड़ी आबादी बदलाव चाहती है और वह किसी नए चेहरे को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती है। सर्वे में यह भी दर्शाया गया कि नीतीश कुमार की लोकप्रियता में गिरावट आई है और विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने लोगों के बीच अपनी एक मज़बूत पकड़ बनाई है।
सर्वे के अनुसार:
- 42% जनता चाहती है कि अगला मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव हो।
- 34% जनता अभी भी नीतीश कुमार के पक्ष में है।
- शेष 24% जनता अन्य विकल्पों या नए चेहरे को देखना चाहती है।
नीतीश कुमार और NDA के लिए खतरे की घंटी
नीतीश कुमार, जो पिछले दो दशकों से बिहार की राजनीति में एक केंद्रीय चेहरा बने हुए हैं, के लिए यह सर्वे एक स्पष्ट चेतावनी है। जेडीयू और बीजेपी के साथ गठबंधन कर उन्होंने सरकार चलाई है, लेकिन अब जनता के बीच उनकी छवि धूमिल होती नजर आ रही है।
कई मुद्दों पर सरकार को आलोचना का सामना करना पड़ रहा है:
- बेरोज़गारी और पलायन: बिहार में रोजगार की कमी और युवाओं का पलायन एक पुराना मुद्दा रहा है।
- शिक्षा व्यवस्था: सरकारी स्कूलों की हालत, शिक्षकों की कमी और परीक्षा व्यवस्था में अनियमितता चिंता का विषय बनी हुई है।
- कानून व्यवस्था: हाल के महीनों में महिलाओं के खिलाफ अपराध और बढ़ती गैंग एक्टिविटी ने सरकार की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं।
इन तमाम मुद्दों के कारण जनता का एक वर्ग अब बदलाव की ओर देख रहा है।

तेजस्वी यादव का उभरता प्रभाव
तेजस्वी यादव, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री, इस समय विपक्ष के सबसे मज़बूत उम्मीदवार बनकर उभरे हैं। उन्होंने बेरोज़गारी, शिक्षा और युवाओं के मुद्दों को लेकर कई बार सरकार पर हमला बोला है। उनके नेतृत्व में आरजेडी ने 2020 के विधानसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन किया था, और अब वह खुद को एक परिपक्व नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं।
तेजस्वी की लोकप्रियता खासकर युवा वोटर्स और ग्रामीण क्षेत्रों में तेज़ी से बढ़ी है। उनके भाषणों, सोशल मीडिया अभियान और जनसंपर्क यात्रा ने उन्हें जनता के करीब ला दिया है।
बीजेपी की स्थिति
हालांकि बीजेपी अब भी एक मज़बूत राजनीतिक दल है और उसे काफी समर्थन प्राप्त है, लेकिन नीतीश कुमार के साथ गठबंधन की वजह से कुछ नाराज़गी भी देखने को मिल रही है। बीजेपी के कार्यकर्ताओं का एक वर्ग चाहता है कि पार्टी अगला चुनाव अकेले लड़े या फिर मुख्यमंत्री पद के लिए अपने नेता का चेहरा सामने लाए।
अगर बीजेपी और जेडीयू के बीच समन्वय में कमी आती है, तो यह विपक्ष के लिए एक बड़ा अवसर बन सकता है।
नए चेहरे और संभावनाएं
सर्वे में यह भी देखने को मिला कि जनता अब पारंपरिक नेताओं से इतर नए विकल्पों की ओर देख रही है। बिहार में अब कई ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता, युवा नेता और बुद्धिजीवी सामने आए हैं जो बदलाव की बात कर रहे हैं। अगर इनमें से कोई चेहरा मजबूत राजनीतिक समर्थन पा जाता है, तो वो भी समीकरण बदल सकता है।
जातीय समीकरणों का प्रभाव
बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा से अहम भूमिका निभाते रहे हैं। सर्वे में यह भी सामने आया है कि यादव, मुस्लिम और कुछ पिछड़ी जातियों का झुकाव अभी भी तेजस्वी यादव की ओर है, जबकि सवर्ण और कुछ ओबीसी वर्ग अभी भी एनडीए के साथ खड़े हैं। लेकिन यह समीकरण भी तेजी से बदल रहे हैं क्योंकि युवा मतदाता जाति से अधिक विकास और रोजगार को प्राथमिकता दे रहे हैं।
निष्कर्ष
बिहार चुनावों से पहले आए इस सर्वे ने यह स्पष्ट कर दिया है कि नीतीश कुमार और एनडीए के लिए चुनौती आसान नहीं होने वाली। जनता अब एक बदलाव चाहती है और यह बदलाव या तो तेजस्वी यादव के रूप में होगा या फिर किसी नए चेहरे के रूप में। अगले कुछ महीनों में राजनीतिक दलों की रणनीति, गठबंधन और प्रचार यह तय करेंगे कि बिहार की सत्ता की कुर्सी पर कौन बैठेगा।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, अगर एनडीए अपने प्रदर्शन में सुधार नहीं करता और जनभावनाओं को समझते हुए योजनाएं नहीं बनाता, तो 2025 का विधानसभा चुनाव उनके लिए काफी कठिन साबित हो सकता है।
बिहार की जनता अब ज्यादा जागरूक हो चुकी है। उसे केवल वादे नहीं, ठोस काम चाहिए। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले महीनों में कौन जनता के दिलों पर राज करता है और कौन हार मानता है।
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