अमेरिका दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं — अमेरिका और चीन, एक लम्बे समय से व्यापार युद्ध की स्थिति में उलझी हुई हैं। इस टकराव ने न सिर्फ वैश्विक व्यापार को प्रभावित किया है, बल्कि छोटे देशों, उभरती अर्थव्यवस्थाओं और निवेशकों की नींद भी उड़ा दी है।
अब सवाल यह उठता है कि – क्या यह टकराव किसी समाधान की ओर बढ़ रहा है, या फिर यह और भी अधिक आक्रामक रुख अपनाएगा? और सबसे बड़ा सवाल – इस संघर्ष में पहले झुकेगा कौन? अमेरिका या चीन?
व्यापार युद्ध की पृष्ठभूमि
इस युद्ध की शुरुआत 2018 में हुई जब अमेरिका ने चीन पर यह आरोप लगाया कि वह बौद्धिक संपदा की चोरी, अनुचित व्यापारिक प्रथाओं, और असमान टैरिफ नीतियों के जरिए वैश्विक व्यापार में अनुचित लाभ उठा रहा है।
इसके जवाब में अमेरिका ने चीन के उत्पादों पर भारी टैरिफ (शुल्क) लगाए। चीन ने भी पलटवार करते हुए अमेरिकी उत्पादों पर जवाबी शुल्क लगा दिए। इसके बाद से यह एक ऐसी होड़ में बदल गया, जिसमें दोनों देश एक-दूसरे की अर्थव्यवस्था को दबाने की कोशिश में लगे हैं।
चीन की रणनीति: धैर्य और दीर्घकालिक सोच
चीन एक ऐसी सभ्यता है जो हजारों साल पुरानी है, और उसकी नीति हमेशा से दीर्घकालिक रही है। व्यापार युद्ध में भी चीन ने सीधा टकराव टालते हुए, धीरे-धीरे अमेरिका के कदमों का जवाब देने की रणनीति अपनाई है।
चीन ने घरेलू उत्पादन पर जोर दिया, आत्मनिर्भरता बढ़ाई और अमेरिकी उत्पादों पर निर्भरता कम करने की दिशा में ठोस कदम उठाए। उन्होंने अपने व्यापारिक साझेदारों के साथ नए समझौते किए और “Belt and Road Initiative” के जरिए एशिया, यूरोप और अफ्रीका में निवेश बढ़ाया।

अमेरिका की रणनीति: आक्रामकता और दबाव की नीति
अमेरिका का रवैया शुरू से ही आक्रामक रहा है। वह चीन को न सिर्फ आर्थिक, बल्कि सामरिक प्रतिस्पर्धी भी मानता है।
पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने व्यापार घाटे को कम करने के लिए चीन पर टैरिफ लगाए थे, लेकिन वर्तमान प्रशासन भी इस नीति में ज्यादा बदलाव लाता नजर नहीं आ रहा।
अमेरिका ने टेक्नोलॉजी सेक्टर में चीन को रोकने के लिए Huawei और TikTok जैसे चीनी ब्रांड्स को अपने देश से बाहर करने की पहल की। सेमीकंडक्टर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, और डिफेंस टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में डिकप्लिंग (Decoupling) की रणनीति तेजी से लागू की जा रही है।
वार्ता की कोशिशें: एक असफल प्रयोग?
बीच-बीच में दोनों देशों के बीच वार्ता के दौर चले हैं लेकिन वे ज्यादातर आरोप-प्रत्यारोप और अधूरी समझौता स्थितियों में ही रह गए हैं।
हालांकि कुछ मुद्दों पर दोनों देशों ने “फेज-वन डील” जैसे छोटे समझौते किए, लेकिन बड़े और स्थायी समाधान की दिशा में कोई ठोस पहल होती नहीं दिखी।
किस पर ज्यादा असर पड़ा?
अमेरिका पर प्रभाव:
- कृषि उत्पादों के निर्यात में गिरावट
- टेक्नोलॉजी कंपनियों की लागत में वृद्धि
- घरेलू महंगाई में हल्की बढ़ोतरी
चीन पर प्रभाव:
- निर्यात आधारित कंपनियों पर दबाव
- विदेशी निवेश में गिरावट
- कुछ मल्टीनेशनल कंपनियों ने चीन से उत्पादन हटाया
लेकिन दोनों देश अभी भी आर्थिक रूप से इतने मज़बूत हैं कि ये टकराव उन्हें पूरी तरह तोड़ नहीं सका।
वैश्विक बाजार की प्रतिक्रिया
इस व्यापार युद्ध ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला (Global Supply Chain) को झकझोर दिया है। इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटो, फार्मा जैसे क्षेत्रों में कच्चे माल की कीमतें और उपलब्धता प्रभावित हुई हैं।
छोटे देश, खासकर विकासशील अर्थव्यवस्थाएं, अमेरिका और चीन दोनों के साथ व्यापार करती हैं। इस टकराव ने उनके लिए भी नीति निर्धारण को कठिन बना दिया है।
पहले कौन झुकेगा?
यह सवाल सीधा लगता है, लेकिन इसका उत्तर सरल नहीं है।
- चीन, अपने दीर्घकालिक दृष्टिकोण और आत्मनिर्भरता की नीतियों के कारण व्यापार युद्ध को लंबे समय तक सहन करने की क्षमता रखता है।
- वहीं अमेरिका, अपने मजबूत घरेलू बाजार और वैश्विक वित्तीय नेटवर्क के दम पर सीधे तरीके से दबाव बनाने की नीति पर टिका है।
यदि वार्ता नहीं होती है और दोनों देश अपनी-अपनी जिद पर अड़े रहते हैं, तो संभवतः कोई एक झुकेगा नहीं, बल्कि दोनों को समझौते की मेज पर वापस आना ही पड़ेगा।
निष्कर्ष: समझदारी ही है समाधान
दुनिया एक ऐसे दौर से गुजर रही है जहां टकराव की नहीं, सहयोग की जरूरत है। अमेरिका और चीन जैसे देशों का यह व्यापार युद्ध न केवल उनकी अपनी जनता को प्रभावित कर रहा है, बल्कि पूरी दुनिया को अस्थिर बना रहा है।
वार्ता हो या न हो, लेकिन यह निश्चित है कि अंततः किसी भी युद्ध का समाधान डायलॉग और सहयोग से ही निकलता है। सवाल झुकने का नहीं, बल्कि सही वक्त पर सही दिशा में बढ़ने का है।
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— Shilapatra (@Shilapatra) April 10, 2025
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